सोमवार, अगस्त 19, 2013

समझदारों का गीत

गोरख पाण्‍डेय की डायरी पढ़ने को मिला. उनकी कविता, 'समझदारों का गीत' काफी अलग है... 

हवा का रुख कैसा है,हम समझते हैं
हम उसे पीठ क्यों दे देते हैं,हम समझते हैं
हम समझते हैं ख़ून का मतलब
पैसे की कीमत हम समझते हैं
क्या है पक्ष में विपक्ष में क्या है,हम समझते हैं
हम इतना समझते हैं
कि समझने से डरते हैं और चुप रहते हैं।

चुप्पी का मतलब भी हम समझते हैं
बोलते हैं तो सोच-समझकर बोलते हैं हम
हम बोलने की आजादी का
मतलब समझते हैं
टुटपुंजिया नौकरी के लिये
आज़ादी बेचने का मतलब हम समझते हैं
मगर हम क्या कर सकते हैं
अगर बेरोज़गारी अन्याय से
तेज़ दर से बढ़ रही है
हम आज़ादी और बेरोज़गारी दोनों के
ख़तरे समझते हैं
हम ख़तरों से बाल-बाल बच जाते हैं
हम समझते हैं
हम क्योंबच जाते हैं,यह भी हम समझते हैं।

हम ईश्वर से दुखी रहते हैं अगर वह
सिर्फ़ कल्पना नहीं है
हम सरकार से दुखी रहते हैं
कि समझती क्यों नहीं
हम जनता से दुखी रहते हैं
कि भेड़ियाधसान होती है।
हम सारी दुनिया के दुख से दुखी रहते हैं
हम समझते हैं
मगर हम कितना दुखी रहते हैं यह भी
हम समझते हैं
यहां विरोध ही बाजिब क़दम है
हम समझते हैं
हम क़दम-क़दम पर समझौते करते हैं
हम समझते हैं
हम समझौते के लिये तर्क गढ़ते हैं
हर तर्क गोल-मटोल भाषा में
पेश करते हैं,हम समझते हैं
हम इस गोल-मटोल भाषा का तर्क भी
समझते हैं।

वैसे हम अपने को किसी से कम
नहीं समझते हैं
हर स्याह को सफे़द और
सफ़ेद को स्याह कर सकते हैं
हम चाय की प्यालियों में
तूफ़ान खड़ा कर सकते हैं
करने को तो हम क्रांति भी कर सकते हैं
अगर सरकार कमज़ोर हो
और जनता समझदार
लेकिन हम समझते हैं
कि हम कुछ नहीं कर सकते हैं
हम क्यों कुछ नहीं कर सकते हैं
यह भी हम समझते हैं।

- गोरख पाण्डेय

गुरुवार, अप्रैल 25, 2013

जीत के लिए क्‍या जरूरी है?

भारतीय सेना चीन की सेना के सामने टिक पाएगी या हमें एक बार फिर 1962 देखना होगा?

जीत के लिए क्‍या जरूरी है?
कुशल सेनापति? कारगर रणनीति? आधुनिक सोच? परिस्थितियों का सही विश्‍लेषण? जीत की जिद? स्‍वयं का मूल्‍यांकन? दुश्‍मन का आकलन?

इनमें हमारे पास क्‍या है? अगर हमारे पास उपरोक्‍त सभी सवालों का ईमानदार जवाब है तो हम जीत सकते हैं. केवल जोश और बयान देने भर से कुछ नहीं होने वाला. उदाहरण कई हैं...

1. विश्व का सर्वाधिक कुशल सेनापति नेपोलियन अपनी जिद में रूस के जार की बात भूल गया. रूस के जार का कथन, 'मेरे दो सेनापति, जनवरी और फरवरी, मुझे कभी धोखा नहीं देते' कोई हल्‍की बात नहीं थी. नेपोलियन इन बातों पर ध्‍यान नहीं दिया, दुश्‍मन का मूल्‍यांकन करने और परिस्थितियों को समझने में चूक गया और जिसका परिणाम उसे सेना की भीषण तबाही और शर्मनाक वापसी के रूप में चुकानी पड़ी. नेपोलियन एक कारगर रणनीति बनाने वाला तथा समय से आगे की सोच रखने वाला, जोशीला और जीत की जिद पर सवार कई सफल अभियानों को अंजाम देने वाला एक कुशल सेनापति था. लेकिन परिस्थितियों का और स्‍वयं का सही आकलन नहीं कर पाया. और इस तरह हरदम जीतने वाला सर्वाधिक कुशल सेनापति हार गया.

2. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान भी हिटलर की जिद ने अपनी सेना को रूसी सर्दी में तबाह कर दिया. हिटलर भी परिस्थितियों का सही मूल्‍यांकन नहीं कर पाया और मात खा गया. पराजय के रूप में परिणाम इतिहास में दर्ज है.

गुरुवार, जनवरी 10, 2013

विश्‍वास दिलाने के तरीके की तलाश...

हमारे पास अग्नि और पृथ्‍वी मिसाइल है... संचार के सारे उपकरण है... हमारा देश आने वाले समय में चांद पर कदम रखने की तैयारी कर रहा है... लेकिन हम अपने सेना के परिवार को और देश की जनता को यह विश्‍वास दिलाने की कोशिश करने का तरीका ढ़ूढ़ रहे हैं ताकि उन्‍हें विश्‍वास हो सके कि हम चुप नहीं हैं... हम अपने देश के खिलाफ होने वाले किसी भी हमले को सख्‍ती से निपट सकते हैं... अब और कोई कालिया का परिवार कोर्ट नहीं जाएगा, किसी शहीद सुधाकर की शरीर छलनी नहीं हो पाएगी और ना ही किसी शहीद हेमराज के सिर को कोई दूसरे देश के सैनिक या दूसरे देश के सैनिक समर्थित आतंकवादी काटकर अपने साथ ले जाएंगे... भरोसा है हमारे हुक्‍मरान विश्‍वास दिलाने का यह तरीका इजाद कर लेंगे. 

दलित बस्‍ती में ही सफाई करने क्‍यों पहुंच जाते हैं नेता...

बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्‍यवस्‍था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...