शनिवार, मार्च 15, 2008

जानकर बोलें तो बेहतर हो.....

दो शब्‍द
जनप्रतिनिधियों के लिए यही बेहतर है कि वह जो भी बोले सोच समझ कर बोले। आप अगर सदन को गलत जानकारी देते हैं तो इसका यह अर्थ हुआ कि आप देश की जनता को गुमराह कर रहे हैं। ऐसे ही एक बयान पर नवभारत टाइम्‍स ने एक संपादकीय छपी है जिसे पढ़ा जाना बेहतर हो सकता है।
................................................................................................................................
जानकर बोलें तो बेहतर हो.....
शायद ही कोई हिंदुस्तानी हो, जिसे यह सुनना अच्छा न लगे कि भारतीय तो पूरी दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। यदि यह बात अधिकृत व्यक्तियों द्वारा संवैधानिक मंच से की जाए तो उसमें शक करने की भी कोई वजह नहीं बचती। पिछले दिनों केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री की तरफ से संसद में यह बयान आया कि अमेरिका में 38 फीसदी डॉक्टर भारतीय हैं और नासा तथा माइक्रोसॉफ्ट में एक तिहाई से ज्यादा कर्मचारी भारतीय हैं। स्वाभाविक है कि ऐसी जानकारी पर मेजें भी थपथपाई जाएंगी। पर बाद में पता चला कि मंत्री महोदया की जानकारी का स्रोत इंटरनेट से मिले कुछ आंकड़े हैं, जो काफी बढ़ा-चढ़ाकर पेश किए गए हैं और उनका कोई ठोस आधार या कायदे का कोई सर्वे नहीं है। बल्कि उन दावों का आधार इंटरनेट पर कई वर्षों से चल रही ऐसी चिट्ठी-पत्री है, जो असल में स्पैम है। संसद में मंत्री के बयान का अर्थ है कि उसमें सच्चाई है। जाहिर है इस छिछली जानकारी से न सिर्फ संबद्ध मंत्री की, बल्कि सदन की भी भद्द पिटती है। इस पर तो विशेषाधिकार हनन का मामला हो सकता है। लेकिन इससे हमारे मंत्रियों और मंत्रालयों के अधिकारियों के काम करने की शैली का भी पता चलता है। क्या पता इस तरह वे कितनी योजनाओं के बारे में झूठे-सच्चे आंकड़े पेश करते हों। संभवत: यह भी एक बड़ी वजह है कि देश की आम जनता के लिए चलाए जा रहे अधिकांश विकास कार्यक्रमों से कुछ ठोस हासिल नहीं हो रहा है। जहां तक नासा में काम करने वाले भारतीयों की बात है, तो खुद नासा के मुताबिक यह प्रतिशत चार से पांच के बीच है। अमेरिका में काम कर रहे हिंदुस्तानी डॉक्टर भी ज्यादा से ज्यादा दस फीसदी हैं। हो सकता है कि ऐसे आंकड़ों को गौरव का विषय मानकर मसले को ज्यादा तूल नहीं देने की बात कुछ लोग कहें, पर क्या यह नहीं देखा जाना चाहिए कि इससे कितना नुकसान हो सकता है। मुमकिन है कि अमेरिका में चिकित्सा और आईटी से लेकर उद्यमशीलता तक के क्षेत्र में हिंदुस्तानी सबसे सफल कौम हों, पर ऐसे दावे स्थानीय आबादी को उनके खिलाफ कर सकते हैं। जानकारी के स्रोत के रूप में इंटरनेट के इस्तेमाल में खराबी नहीं है, पर यदि वाहवाही लूटने के लिए वहाँ से आप कचरा उठाते हैं, तो आप नई टेक्नॉलजी की चकाचौंध से अपने देशवासियों को भरमाना चाहते हैं। भारतीयों की उपलब्धियां गिनाना चाहते हों, तो उसके लिए होमवर्क कीजिए, जंक मेल देखकर पीठ थपथपाना मंत्री की गरिमा के अनुरूप नहीं है। और फिर महान दिखने की ऐसी जल्दी क्या है?

कोई टिप्पणी नहीं:

दलित बस्‍ती में ही सफाई करने क्‍यों पहुंच जाते हैं नेता...

बीजेपी हो या कांग्रेस या आम आदमी पार्टी सभी अपने सोच से सामंती व्‍यवस्‍था के पोषक हैं। अगर ऐसा नहीं होता तो कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वॉड...